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शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक कहानी एक शिक्षक की जुबानी, My K12 Story: Mr Gaurav Kumar

Updated: May 21, 2021

SHARING AN INSPIRING AND EVENTFUL JOURNEY OF MR. GAURAV KUMAR- A PASSIONATE EDUCATIONIST, AN EDULEADER AND A SCIENCE TEACHER AT SWAMI VIVEKANAND PUBLIC SCHOOL, YAMUNANAGAR, HARYANA.





साइंस टीचर हो तो ऐसा: ‘वेस्ट मैनेजमेंट’ की तकनीक सिखाकर प्लास्टिक की बोतलों से बनवाया हाइड्रो-रोकेट!


स्कूल के प्रांगण में पेड़ लगाने और उनकी देखभाल से लेकर ‘बेस्ट आउट ऑफ़ वेस्ट’ जैसे प्रोजेक्ट भी हो रहे सफल


बचपन से हमें यह बताया गया है कि आर्ट्स और साइंस, दोनों बहुत ही अलग क्षेत्र हैं। आम तौर पर ऐसी धारणा प्रचलित है कि यदि कोई छात्र कला संबंधी गतिविधियों में आगे है तो उसे गणित और साइंस के साथ दूसरे तकनीकी विषयों में ज़्यादा रुचि नहीं रहती।


लेकिन वास्तव में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। यह सिर्फ़ किसी क्षेत्र या विषय में दिलचस्पी का मामला है। रचनात्मक लोग तो विज्ञान के कठिन से कठिन सवालों को भी सहजता से लेते हैं और बहुत आसानी से जटिल से जटिल विषय को समझा देते हैं।


यदि आप कभी इस तरह के शख्स से नहीं मिले हैं, तो कोई बात नहीं।हरियाणा के शिक्षक गौरव कुमार से मिलें, जो विज्ञान के मुश्किल से मुश्किल सिद्धांतों को भी दिलचस्प कहानियों और बहुत ही रचनात्मक मॉडल्स के ज़रिए छात्रों को समझा देते हैं।




गौरव कुमार का मानना है कि जैसे किसी फिल्म की कहानी हमें ताउम्र याद रहती है, वैसे विषयों के कॉन्सेप्ट्स याद नहीं रहते। उनका कहना है कि इसके पीछे वजह यह है कि फिल्म की कहानी से हम जुड़ जाते हैं और वह हमारे दिलो-दिमाग़ में रच-बस जाती है। इसलिए गौरव कुमार हमेशा कोशिश करते हैं कि पढ़ाए जाने वाले हर एक चैप्टर के लिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी से कोई उदाहरण लेकर उसके इर्द-गिर्द एक कहानी बुनें, ताकि बच्चों के लिए उसे विजुअलाइज करना आसान रहे। साथ ही, वे छात्रों को मनोरंजनात्मक गतिविधियों द्वारा भी विज्ञान की शिक्षा देते हैं।


हरियाणा में यमुनानगर के स्वामी विवेकानंद पब्लिक स्कूल में पिछले 11 सालों से विज्ञान शिक्षक के रूप में कार्यरत गौरव कुमार थिएटर और मिमिक्री आर्टिस्ट भी हैं। साथ ही, वे कहानियाँ भी लिखते हैं और रेडियो जॉकी के रूप में भी काम कर चुके हैं।


“मेरे पापा भले ही एक किसान थे, लेकिन मेरी साइंस में इतनी रुचि उन्हीं के कारण है। जब भी हमारे यहाँ कोई मेला लगता या फिर जादूगर के शो होते थे तो हम देखने जाते थे। पापा हमेशा घर आकर हमें समझाते कि इन करतबों के पीछे क्या लॉजिक होता है। बस, वहीं से मुझे इस तरह से साइंस पढ़ने और पढ़ाने में मजा आने लगा।”


बच्चों के मन में साइंस के प्रति डर को निकालकर उन्होंने उनमें एक अलग तरह की समझ विकसित करने की कोशिश की। उनके लिए परीक्षा में छात्रों के सिर्फ़ अच्छे नंबर नहीं, बल्कि उनका सर्वांगीण विकास ज़्यादा मायने रखता है। इसलिए उनका पूरा ध्यान इसी पर केन्द्रित होता है कि कैसे वे अपने छात्रों की किसी भी कमजोरी को उनकी ताकत में बदल दें।


गौरव कुमार कहते हैं, “मेरा उद्देश्य है कि बच्चों की शिक्षा सिर्फ़ स्कूल के भीतर तक ही सीमित न रहे, बल्कि वे अपने आस-पास के वातावरण के प्रति भी जागरूक रहें। सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर उनकी एक समझ बने और वे खुद स्थिति को सुधारने के लिए प्रयासरत हों। इसलिए मैं अपने स्कूल में और अन्य स्कूलों में जाकर भी सेमिनार और वर्कशॉप करता हूँ, ताकि बच्चों और दूसरे लोगों को भी यह समझा सकूँ कि हर चमत्कार के पीछे विज्ञान है। यदि हम बच्चों के मन में अभी से विज्ञान के लॉजिक और सिद्धांतों के बीज डालेंगे, तभी अंधविश्वासों से मुक्ति मिलेगी।”


बच्चे जब ये लॉजिक स्कूल में सीखते हैं और फिर घर जाकर गतिविधियाँ करते हैं, तो घरवालों के मन से भी वे अंधविश्वासों को खत्म कर पाते हैं। समाज को बदलने की राह हमें अपने आने वाले भविष्य निर्माताओं के ज़रिए तय करनी होगी। तभी हम एक समृद्ध भविष्य का सपना देख सकते हैं।


स्कूल में पढ़ाने के अलावा, गौरव कुमार शहर की एक रेडियो सर्विस से भी जुड़े हुए हैं। यहाँ पर वे विज्ञान से संबंधित शो करते हैं। उनका ‘रेडियो केमिस्ट्री’ नाम का शो काफ़ी मशहूर रहा है।





स्कूल के विकास में भी उनका बहुत योगदान है। उन्होंने स्कूल प्रशासन की मदद से कई क्षेत्रों में नई पहल की है। उनके स्कूल में पर्यावरण संरक्षण पर बहुत काम हो रहा है। गौरव कुमार कहते हैं, “अपने एक अभियान के तहत हम नीम के पेड़ से गिरने वाली निम्बौलियों को इकट्ठा कर लेते हैं। इन निम्बौलियों से नीम के पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है। फिर जब हमारे स्कूल में किसी भी बच्चे का जन्मदिन होता है, तो एक पौधा उस बच्चे को भेंट किया जाता है और उसे कहा जाता है कि वह उसे अपने नाम से अपने घर में, घर के बाहर या खेत में कहीं भी लगाए।”


साथ ही, स्कूल के प्रांगण में पेड़ लगाने और उनकी देखभाल से लेकर ‘बेस्ट आउट ऑफ़ वेस्ट’ जैसे उनके अभियान भी काफ़ी सफल हो रहे हैं।


कुछ वैज्ञानिकों से प्रेरित होकर गौरव भी अपने छात्रों से घर में मौजूद रोज़मर्रा के सामानों से साइंस के मॉडल और प्रोजेक्ट्स बनवाते हैं। हर एक कॉन्सेप्ट के लिए अलग-अलग ज़ीरो कॉस्ट मॉडल्स उनके छात्र अपने घरों से बनाकर लाते हैं। उन्होंने वेस्ट मटेरियल से लगभग 100 प्रोजेक्ट डिजाइन किए हैं जिनसे बच्चे विज्ञान के नियमों को आसानी से समझ सकते हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने विज्ञान को पढ़ाना जारी रखा और बिना कोई पैसे लिए बच्चों को विज्ञान की शिक्षा दी । ऑनलाइन क्लासेज में लगभग 100 बच्चे रोज उनकी क्लास को ज्वाइन करते थे।


फ़िलहाल, उनकी कोशिश है कि किस तरह से ‘वेस्ट मैनेजमेंट यानी कचरा प्रबंधन’ पर काम किया जाए। वे कहते हैं, “हमारे घर में, गली-सड़कों पर, और किसी भी जगह हम जाएँ, हमें बहुत तरह का कचरा दिखता है। ज़्यादातर हम इसे अनदेखा कर देते हैं, लेकिन अब वक़्त आ गया है कि हम इस मुद्दे पर गौर करें, क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया गया तो हमारा भविष्य ख़तरे में पड़ जाएगा।


इसी दिशा में काम करते हुए उन्होंने कुछ समय पहले ‘प्लास्टिक वेस्ट’ का फिर से इस्तेमाल करने के लिए अपने बच्चों से प्लास्टिक की बोतलों से एक हाइड्रो-रॉकेट बनवाया है। उन्होंने ‘वायु दबाव’ सिद्धांत का इस्तेमाल करते हुए इस रॉकेट का प्रोटोटाइप बनाया। उन्होंने यूट्यूब पर विज्ञान व तकनीक से संबंधित उपलब्ध वीडियो से भी इसे बनाने में मदद ली।


एक बार प्रोटोटाइप तैयार होने के बाद उन्होंने इस तकनीक को अपने छात्रों को समझाया और उन्हें घर से अपना खुद का हाइड्रो-रॉकेट बनाकर लाने का प्रोजेक्ट दिया। वह बताते हैं कि उनके 90 छात्रों ने सफलतापूर्वक इस रॉकेट को बनाया था। 60-70 फीट की उंचाई तक उड़ पाना वाला यह हाइड्रो-रॉकेट यकीनन इस शिक्षक और बच्चों के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है।


आज उनके पढ़ाए एक छात्र की साइंस में इस कदर रुचि और क्षमता बढ़ी कि उसने अब तक टेली-एम्बुलेंस, मल्टी-पर्पज मशीन और एक बाइक भी बनाई है, तो वहीं उनका एक और छात्र यूएस में गूगल के साथ इंटर्नशिप कर रहा है। अपने छात्रों की इन कामयाबियों पर वे फूले नहीं समाते हैं।


अब उनकी कोशिश है कि वे अपने छात्रों को अपनी प्रतिभा ज़रूरी समस्याओं को हल करने की दिशा में लगाने के लिए प्रेरित करें। इन समस्याओं में उन्होंने सबसे पहले ‘कचरा प्रबंधन’ को रखा हुआ है। रेग्युलर कक्षाओं के साथ-साथ वे ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए भी प्रयासरत हैं, जिनसे अलग-अलग तरह के ‘वेस्ट’ से ‘बेस्ट’ प्राप्त करने में मदद मिले।


गौरव कुमार

स्वामी विवेकानंद पब्लिक स्कूल,

सेक्टर 17, हुडा, जगाधरी, यमुनानगर, हरयाणा



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